कालाकांकर, उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में स्थित एक ऐतिहासिक रियासत है, जो अपने गौरवशाली इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जानी जाती है। इस रियासत का इतिहास गोरखपुर के मझौली गाँव से शुरू होता है, जहाँ से इस राजवंश के पूर्वज मिर्जापुर के कान्तित परगना होते हुए मानिकपुर आए और यहाँ अपना महल बनवाया। 1193 में राय होममल्ल का राज्याभिषेक हुआ, और बाद में राजा हनुमंत सिंह ने कालाकांकर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया।
कालाकांकर के राजवंश में कई प्रमुख शासक हुए, जिनमें राजा अवधेश सिंह और राजा दिनेश सिंह का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। राजा दिनेश सिंह स्वतंत्रता के बाद लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री रहे, जबकि उनकी पुत्री राजकुमारी रत्ना सिंह प्रतापगढ़ से कई बार संसद सदस्य रह चुकी हैं।
स्वतंत्रता संग्राम में कालाकांकर का योगदान अद्वितीय रहा है। महात्मा गांधी ने यहाँ 14 नवंबर 1929 को विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी, जो अंग्रेजों के खिलाफ विरोध का प्रतीक बनी। कालाकांकर से ही 'हिन्दोस्थान' नामक हिंदी अखबार निकाला गया था, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम और अंग्रेजों के अत्याचार की खबरें प्रकाशित होती थीं। यह अखबार जनता को जागरूक करने का महत्वपूर्ण माध्यम बना।
1857 की क्रांति के दौरान, कालाकांकर के लाल प्रताप सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ वीरता से लड़ाई लड़ी और 19 फरवरी 1858 को चांदा की लड़ाई में शहीद हो गए। उनकी वीरता को सम्मानित करते हुए भारतीय डाक विभाग ने 2009 में उन पर एक डाक टिकट जारी किया।
कालाकांकर का इतिहास न केवल इसके राजाओं और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है, बल्कि यह स्थान सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों का भी केंद्र रहा है। यहाँ का गांधी चबूतरा आज भी उस समय की याद दिलाता है जब महात्मा गांधी ने यहाँ विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी। कालाकांकर का यह धरोहर आज भी लोगों को प्रेरित करता है और इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखता है।