इनके पिता कृपालदास, पितामह वीरभानु, प्रपितामह राय रामदास और वृद्ध प्रपितामह राय नरोत्ताम दास थे।
भिखारी दास जी के पुत्र अवधेश लाल और पौत्र गौरीशंकर थे जिनके अपुत्र मर जाने से वंश परंपरा खंडित हो गई।
भिखारी दास जी के निम्न ग्रंथों का पता लगा है -
रससारांश संवत - रससारांश 1799
छंदार्णव पिंगल - छंदार्णव पिंगल संवत 179
काव्यनिर्णय - काव्यनिर्णय संवत 1803
श्रृंगार निर्णय - श्रृंगारनिर्णय संवत 1807
नामप्रकाश कोश - नामप्रकाश कोश संवत 1795
विष्णुपुराण भाषा - विष्णुपुराण भाषा दोहे चौपाई में
छंद प्रकाश,
शतरंजशतिका,
अमरप्रकाश -संस्कृत
भिखारीदास जी की कुछ रचनाओं का उदाहरण देखिए-
केसरिया पट कनक-तन, कनका-भरन सिंगार।
गत केसर केदार में, जानी जाति न दार।
कौनु सिंगार है मोरपखा, यह बाल छुटे कच कांति की जोटी।
गुंज की माल कहा यह तौ, अनुराग गरे परयौ लै निज खोटी॥
दास बडी-बडी बातें कहा करौ, आपने अंग की देखो करोटी।
जानो नहीं, यह कंचन सी तिय के तन के कसिबे की कसोटी॥
नैनन को तरसैऐ कहां लौं, कहां लौं हियो बिरहाग में तैऐे
एक घरी न कं कल पैऐ, कहां लगि प्राननि को कलपैऐे
आवै यहै अब 'दास विचार, सखी चलि सौतिहु के घर जैऐ।
मान घटेतें कहा घटिहै, जु पै प्रान-पियारे को देखन पैऐ॥
मोहन आयो इहां सपने, मुसकात और खात विनोद सों बीरो।
बैठी हुती परजंक पै हौं उठी मिलिबे उठी मिलिबे कहं कै मन धीरो॥
ऐसे में 'दास बिसासनी दसासी, जगायो डुलाय केवार जंजीरो।
झूठो भयो मिलिबो ब्रजराज को, ए री! गयो गिरि हाथ को हीरो॥
आलिन आगें न बात कढै, न बढै उठि ओंठनि तें मुसुकानि है।
रोस सुभाइ कटाच्छ के घाइन, पांइ की आहट जात न जानि है॥
दास न कोऊ कं कबं कहै, कान्ह तै यातैं कछू पहिचानि है।
देखि परै दुनियाई में दूजी न, तोसी तिया चतुराई की खानि है॥
होत मृगादिक तें बडे बारन, बारन बृंद पहारन हेरे।
सिंदु में केते पहार परे, धरती में बिलोकिये सिंधु घनेरे॥
लोकनि में धरती यों किती, हरिबोदर में बहु लोक बसेरे।
ते हरि 'दास बसे इन नैनन, एते बडे दृग राधिका तेरे॥
अरविंद प्रफुल्लित देखि कै भौंर, अचानक जाइ अरैं पै अरैं।
बनमाल भली लखि कै मृगसावक, दौरि बिहार करैं-पै-करैं॥